Monday, April 16, 2012

यादों के बस्ते से

माँ का आँचल छोड़ के हमने 
जब पहला पग रखा था.
यह लोक अलौकिक लगता था 
जीवन ही अनोखा लगता था.
दृग चक्षु हमारे हुए सन्न 
हाय! हम कैसे हैं विपन्न.
तब साथ में आये तुम उस दिन
फिर याद हुए वो प्यारे दिन.

कच्ची मिट्टी के पुतले थे
मन तनिक भी नहीं मैले थे.
जैसा भी लोग सिखाते थे
हम वही सीखते जाते थे.
गुरुवर जो देते परम ज्ञान
रखते थे समझ के राम बाण.
अब हुए हमारे मित्र अभिन्न
फिर याद हुए वो प्यारे दिन.

फिर उम्र बढ़ी तो ज्ञान बढ़ा
बुद्धि का विषय विमान उड़ा.
वही जगत अब लगा छुद्र 
पर भरा नहीं मन का समुद्र.
तू मित्र नहीं अब जीवन था
जिस तरह ह्रदय का कम्पन था.
एक पल भी ना बीते तेरे बिन
फिर याद हुए वो प्यारे दिन.

जब आज वो बातें याद आयीं
सहसा ही आँखें भर आयीं.
हे मित्र कहाँ हो? आ जाओ
फिर ह्रदय को कम्पन दे जाओ.
जीवन की है अंतिम आस यही
पूरी हो ये फरियाद मेरी.
अब राह तकूँ तारे गिन गिन
फिर याद हुए वो प्यारे दिन.

No comments:

Post a Comment