Saturday, November 14, 2009

जुगनू

खेला हूँ मैं तेरी रोशनी से बहुत,
मुट्ठियों में भी बंद करके देखा तुझे,
नेमतों में से कुदरत की तू भी तो है
एक हस्ती  कभी पर ना समझा तुझे |

क्या हुआ जो अँधेरे हैं  चारों तरफ,
रोशनी एक आती है हमको नज़र,
जुगनुओं, जाएँगी अब ये राहें गुजर
बन सको तुम अगर बस मेरे हमसफ़र |

चाँद की चांदनी पर ना मुझको यकीन,
क्या पता कब ये छुप जाएँ बादल तले,
घटते घटते ये एक रोज़ मिट जायेंगी
बढ सकूँगा अगर संग तू मेरे चले |