Tuesday, September 29, 2009

दिल से

हज़ारों की भीड़ में अंजान हूँ मैं,
गौर से देखो, तुम्हारी ही तरह इंसान हूँ मैं,
मौजों की लहरें इस दिल में भी उठती हैं,
दोस्त मेरे, दिल का बड़ा कदरदान हूँ मैं.

कारवाँ  ज़िन्दगी का गुजर जायेगा
ज़माने के रंगों में रंगते हुए.
रंज-ओ-ग़म ये मगर फिर रहेगा सदा,
ज़िन्दगी को कभी खुद से जी न सके.

नाम-ओ-शोहरत किसी को भी मिल जाती है,
पर, शुकूँ दिल का सबको ही मिलता नहीं.
दिल की सुनने का जज्बा है जिस वीर में,
काँटों की राह चलने से डरता नहीं.


2 comments:

  1. good one T2..aur jitna bhara hai sab nikalo yahin par..hum hein padhne ke liye..keep it up

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