खेला हूँ मैं तेरी रोशनी से बहुत,
मुट्ठियों में भी बंद करके देखा तुझे,
नेमतों में से कुदरत की तू भी तो है
एक हस्ती कभी पर ना समझा तुझे |
क्या हुआ जो अँधेरे हैं चारों तरफ,
रोशनी एक आती है हमको नज़र,
जुगनुओं, जाएँगी अब ये राहें गुजर
बन सको तुम अगर बस मेरे हमसफ़र |
चाँद की चांदनी पर ना मुझको यकीन,
क्या पता कब ये छुप जाएँ बादल तले,
घटते घटते ये एक रोज़ मिट जायेंगी
बढ सकूँगा अगर संग तू मेरे चले |